Tuesday, October 25, 2011

happy diwali

dharti k kan-kan mein bikhre,
jagmag jyoti diwali ki,
jan jan k ur-dwar pe pahunche,
shubhkamna diwali ki.shubh diwali-

Monday, February 7, 2011

शुभदा बसंतपंचमी

दूर कहीं से कोयल बोली,
कानों में मिसरी सी घोली।
भौरों की गुन गुन,
तितली की चंचल,
चितवन से डाली डाली डोली।
ठंड से ठिठुरते हुए,
मौसम ने ली अंगड़ाई
अलसाए सूरज ने आँखे खोली।
चटकने लगी धूप सुनहरी,
पीली पीली सरसों फूली।
लाल लाल पलाश दहका,
महुआ की डाली डाली झूली।
सतरंगी छटा से सज गयी,
जंगल और बागों में रंगोली।
-मधुर

सुन्दर वसन पहन आया रे पावन बसंत।
देखो देखो कैसे रिझाए रे मन भावन बसंत।।
मधुमय सुरभित वन उपवन सारे।
फूली सरसों खेत हुए पीले सारे।।
नयनों को सुख दें ऒ साथी आ रे।
सज गयी फुलवारी आ देख नजा़रे।।
भंवरों से गुंजित ये है प्यारा बसंत।
देखो देखो कैसे रिझाए रे मन भावन बसंत।।
माघ बीत गया फागुन मदमाता।
इतराता इठलाता जैसे मौर सजाता।।
कोकिल कूक स्वर मन को लुभाता।
सजतीं मंजरियाँ रसाल बौराता।
भीनी भीनी सुरभि फैलाए रे मादक बसंत।
देखो देखो कैसे रिझाए रे मन भावन बसंत।।

-नीलम

Friday, October 16, 2009

happy diwali

DEAR,

ES DIWALI PAR
EK DIYA JALAY APNE LIYE
EK DIYA JALAY PARIWAR KE LIYE
EK DIYA JALAY SAMAJ KE LIYE
EK DIYA JALAY DESH KE LIYE
EK DIYA JALAY VISHWA KE LIYE
KONA KONA ROSHAN HO
KOI GHAR NA RAHE KHALI
AISI MANAY DIWALI


HAPPY DIWALI

MADHUR KULSHRESHTHA
NEELAM, SHREYANSHI & SHREYANSH
GUNA

Sunday, March 8, 2009

रंग रंगीली आई होली
खुशियों ढेरों लाई होली
राजा रंक सभी घर होली
पकवानों सी मीठी होली
बैर भाव भुलाए होली
सबको गले लगाए होली
तन मन स्वस्थ सहेजे होली
होली होली सबकी भाए होली
मस्त मस्त रंग रंगीली होली

Saturday, December 15, 2007

lost childhood

जन्म लेता है एक इंसान
और मौत होती है
हिन्दू या मुसलमान की
पर इस बीच
कितनी ही बार मौत होती है
इंसान की ।।

खोता बचपन
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मेरे होश संभालने से लेकर
आज होश गड़बड़ाने तक
कितनी बदल गई है दुनियाँ,
जंगल अब खिलखिलाते नहीं हैं
पेड़ पहले जैसे बौराते नहीं हैं
गाएं रंभाती नहीं हैं
और चिड़ियाँ चहचहाती नहीं हैं।

वयस्क तो वयस्क
अब बच्चे भी ठहठहाते नहीं हैं
कितनी बोझिल हो गई है जिंदगी

अगर यह सब यूँ ही चलता रहा
तो एक दिन
बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल हो जाएगा
मुस्कुराना और ठहठहाना।

जगह जगह खुल जाएंगी
प्रयोगशालाएं और व्यायामशालाएं
जहाव
व्यावसायिकता भरे अंदाज में
विशेषग्यता के दर्प से दमकते हुए
विशेषग्य
सिखाएगें वैग्यानिक ढंग से मुस्कुराना
मुँह खुलने की नाप से लेकर
दाँत दिखाने तक की गिनती
लिखी होगी फार्मूलों के रूप में।।

Saturday, December 1, 2007

unknown mistake

अबोध गलती
अस्पताल के जनाने वार्ड में
लगा हुआ था मजमा
भीड़ पर भीड़ जुट रही थी
हो रहा हो जैसे कोई नगमा।

शोर-शराबे के बीच
गूँज उठती थी किसी माँ के
व्यथित ह्रदय की टीस
'हाय मेरा बच्चा'।

किसी दुर्घटना के अंदेशे से
मेरा ह्रदय काँप उठा
ठिठक कर मैं वहाँ झाँक उठा।

भीड़ के बीच
तीन नव प्रसूताएं
अलग-अलग वेशभूषाएं
और अलग-अलग मजहबों की बैठी थीं
तीनों के ही आँचल से
दूध की धार बह रही थी
तीनों ही के चेहरों पर
मात्रत्व की कांति थी।

बड़े ही असमंजस में
अनजान भय के साए में
अपनी ममता से दूर थीं
ममत्व के बिछड़ने की टीस
और आँचल के दर्द से
वे रो रहीं थीं।

वहीं पास में तीन नर्सें
तीन नवआगन्तुकों को
अपने-अपने आँचल में समेटे
सहमीं सहमीं खड़ीं थीं।

तीनों ही मासूम और कोमल बच्चे
दुनियाँ के रस्मो-रिवाजों से अनजान
ढूँढ रहे थे अपनी-अपनी पहचान
बंद आँखों से वे
सारा संसार झाँक रहे थे
हर स्त्री में अपनी माँ की छवि देख रहे थे।

रुदन और क्रंदन के बीच
क्या हुआ, क्या हुआ,
शोर हो रहा था
पर वहाँ क्या हुआ है
हर कोई अनजान था।

मैंने डरते- डरते
वहाँ एक प्रश्न उछाला
'सिस्टर माजरा क्या है'
क्या घटित हुआ
और ये नजारा क्या है।

डरती सहमती हुई
एक नर्स बोली
'भाई साहब' गजब हो गया है
हमसे एक गलती हो गई है बड़ी ही भोली
हम तीनों
इन तीनों बच्चों की तीमारदारी के लिए
अलग-अलग तैनात थे
पर भूलवश हमनें तीनों ही बच्चों को
एक साथ नहला दिया
तीनों ही बच्चों को जाति-पाँति की दीवार से हटकर
एक सा प्यार दिया।

हमारे इस प्यार में हमारा ध्यान हट गया
कौन बच्चा किस का है, का भेद मिट गया।
हम तीनों में ही इंसान का रूप देखने लगे
मासूमों की किलकारियों से खेलने लगे।

पर जब हमारा ध्यान टूटा
हमें अपनी गलती के अहसास से पसीना छूटा
हम बच्चों की पहचान ही भूल गए
कौन किस माँ का बेटा है
सभी ने तो एक ही रूप-रंग अपने में समेटा है।

हमने डरते डरते अपनी गलती
यहाँ बयान कर दी
कौन किसका बच्चा है
ये जिम्मेदारी माँओं को सौंप दी।

पर क्या करें हम
माँएं भी नहीं पहचान पा रहीं हैं
कि किसने लिया है उनकी कोख से जनम
सभी दूसरे के जाए बच्चे को नहीं लेना
चाह रहीं हैं
इन मासूमों को गोद लेने से भी डर रहीं हैं।

बच्चे भूख से बिलख रहे हैं
अपनी माँओं के प्यार का साया ढूँढ रहे हैं।

अब आप ही बताएं
हम कैसे करें इनकी पहचान
कौन हिन्दू, कौन सिख और कौन मुसलमान।

हम अपनी गलती मान रहे हैं
तीनों से ही एक-एक बच्चा लेने को कह रहे हैं
पर तीनों ही हमारी बात नहीं मान रहीं हैं
और हम अपनी नौकरी जाने से डर रहीं हैं।

पता नहीं भगवान को भी
क्या मजाक सूझता है
हमारी विनती से भी
उसका दिल नहीं पसीजता है।
कितनी ही बार हम अपना दुखड़ा रो चुके हैं
कि भगवान हमारी मुश्किलें आसान कर दो
जन्म लेते ही बच्चे को उसकी
कुछ अलग पहचान दे दो।

आज हमारी गलती से
तीनों बच्चे अपने-अपने परिवार के होते हुए
अनाथ हो गए हैं
और उनकी माँओं की कोख भी
औलाद होते हुए भी सूनी है।

अब हम अपनी गलती का
प्रायश्चित करेंगे
और आजन्म
कुँवारी रहकर
कुँवारी माँ बनेंगे।।

Friday, November 2, 2007

धन्य-धन्य कादम्बिनी, तुम ऐसे नाते जोड़ो।
पूर्व जन्म के रिश्ते जैसे, मोती और धागे से जोड़ो।।
पिरो पिरो कर हार अनोखा, हमको यह उपहार दिया।
जिस बान्धव को कभी न देखा, उसको उर के निकट किया।।

आपको कहानियाँ पढ़ने का शौक हो तो पढ़िए, मेरा कहानी संग्रह "आकाश अधूरा है"

मेरी गजल-
ये प्यार मेरा, दीदार तेरा, ये सब मेरी चाहत है,
ये तो मन का आकर्षण, प्यार ही मेरी इबादत है।
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मैं क्या लिखूँ, अपने हालात लिखूँ या अपने ख़यालात लिखूँ,
देता है ज़माना अपनी दुहाई, कैसे मैं अपने जज़्बात लिखूँ।
मेरा प्यार एक हकीकत है, कोई छलावा नहीं,
दिल चीर नहीं सकता अपना, कैसे मैं प्यार की सौगात लिखूँ।
मैं क्या लिखूँ--------
पल-पल कर ये जिंदगी यूँ ही गुजर जाएगी,
अब और इंतजार मुमकिन नहीं, कैसे मैं अपने सवालात लिखूँ।
मैं क्या लिखूँ--------
ये जिंदगी बन गयी है चलता हुआ कारवाँ,
अब सफर होता नहीं 'तन्हा' कैसे मैं अपने ठिकानात लिखूँ।
मैं क्या लिखूँ--------
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हर शाम भीगती है मेरी, आँसुओं की बरसात में,
आँखों में ही गुजर जाती है नींद 'तन्हा' रात में।

किसको मैं अपना कहूँ, किससे कहूँ यादों का सफर,
अजनबी है हर कोई यहाँ, अजनबी है ये सारा शहर।

मोहब्बत की दास्तान कितनी अजीब है,
जिसने दिल चुराया, वही अजीज है ।